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हे सुत पुत्र मत लड़ो इनसे ( कविता- केशव झा )


हे सुत पुत्र मत लड़ो इनसे ।।


तुम रश्मिरथी तुम महारथी ,
तुम तेजवीर तुम निस्वार्थी ,
तुम शूरवीर तुम अधिरथी ,
तुम उत्तम योद्धा तुम परमारथी ,
हे राधेय मत ठनो इनसे ,
हे सुत पुत्र मत लड़ो इनसे ।।

ये लोग परे जो खड़े हुए हैं ,
समक्ष तुम्हारे अड़े हुए हैं ,
भयहीन हैं पर डरे हुए हैं ,
सोच इनके गड़े हुए हैं ,
हे सूर्यपुत्र समर न करो इनसे ,
हे सुत पुत्र मत लड़ो इनसे ।।

अरे जात पात के पट्टियों से लोचन इनका अभिमानित है ,
क्षत्रिय कुल में जन्म लेकर पांडव स्वयं सम्मानित हैं ,
हे वसुषेण यह वाणी सुनो तुम नित कर्म का मार्ग चुनो ,
जाकर रथ की तुम डोरी धरो मत भिक्षा की तुम झोरी धरो ,
हे अधिरथी रण न छेड़ो इनसे ,
हे सुत पुत्र मत लड़ो इनसे ।।

तुम्हारे सामर्थ्य से अनजान हैं ये ,
जातिभेद से विद्वान हैं ये ,
ये नेत्रहीन तुम्हारी चमक नही देख पा रहे हैं ,
कवच कुंडल और तुम्हारी धमक नही देख पा रहे हैं ,
हे वैकर्तन संग्राम न धरो इनसे ,
हे सुत पुत्र मत लड़ो इनसे ।।

दुर्योधन ने सम्मान दिया है ,
अंगराज का पहचान दिया है ,
मित्रता उसकी तुम स्वीकार लो ,
अपने सामर्थ्य को नया आकर दो ,
सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर तुम ही हो ,
पार्थ का करधर तुम ही हो ,
हे अंगराज कर्ण युद्ध न करो इनसे ,
हे सुत पुत्र मत लड़ो इनसे ।।

रचयिता - केशव झा