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आज भी आप हमारे दिलों में ‘अमर’ है


12th सितंबर : स्वर्गीय दिलीप लालवानी जी के जन्मदिन पर विशेष




परमपिता परमात्मा ने जब इस सृष्टी का सर्जन किया तो उनके मन में यह भावना पैदा हुई कि क्यों ना एक इंसान बनाया जाये जिसके मन में प्रेम, दया, करूणा, वात्सल्य हो और वह दु:खी और पीडि़त इंसानों के काम आ सके और अपना जीवन सफल बना सके, परन्तु आधुनिक युग में हम देखते हैं कि कई लोग स्वार्थी कार्य कर अपना जीवन व्यर्थ कर देते हैं तो कुछ लोग नि:स्वार्थ भावना से गरीबों, जरूरतमंदों और बेसहारा लोगों का सहारा बनते हैं और अपने व्यवसाय के साथ-साथ समाजसेवा कर अपनी ऐसी अमिट छाप छोड़ जाते हैं कि लोग आजीवन उनके दिखाये हुए मार्ग को याद रखते हैं. ऐसी ही शख्सीयतों में से एक रहे श्री दिलीप लालवानी जिन्होंने अपने जीवन काल में विभिन्न पद, विभिन्न व्यवसाय और विभिन्न सेवा कार्य कर लोगों का दिल जीता और मरणोपरांत भी वे लोगों के दिलों में सदा अमर हैं।
स्वर्गीय दिलीप लालवानी जी एक मध्यम वर्गीय परिवार के लाडले बेटे थे, जिन्होंने अपने परिवार के साथ इतना सुखमय जीवन भी नहीं बिताया कि ऐश्वर्य पूर्ण जिंदगी जी सके, यही कारण है कि उनका परिवार राजस्थान छोड़कर मुंबई में आकर बसा जहां से एक नौकरी पेशा व्यक्ति के रूप में युवा दिलीप लालवानी ने अपना पहला चरण शुरू किया. लेकिन जब वे उल्हासनगर आये तो उनके जीवन काल में ऐसे घटनाक्रम बीते जो उन्हें फर्श से अर्श तक ले गये. पत्रकारिता की शुरूआत साप्ताहिक कल्याण एक्सप्रेस नामक अखबार से हुई जो बाद में दैनिक के रूप में परिवर्तित हुई और दैनिक 'धनुषधारी' का उदय हुआ। दैनिक 'धनुषधारी' नामक युवा दिलीप लालवानी को इसलिए पसन्द था, क्योंकि यह ऐक ऐसा योद्धा है जो धनुष-बाण लेकर युद्ध में उतरता है और दिलीप लालवानी जी का जीवन भी उतार-चढ़ाव देखते हुए एक योद्धा के रूप मे परिवर्तित हुआ। तीखी और स्पष्ट लेखनी ने उन्हें दिनों दिन प्रसिद्धि के मुकाम पर पहुंचाया। उल्हासनगर शहर में उनके जैसी भाषा पर पकड़ केवल चुनिंदा लोगों की रही। दिलीप लालवानी जी ने दैनिक 'धनुषधारीÓ के माध्यम से हर एक राजनीतिक पक्ष पर तंझ कसा जो खुद को सर्वे-सर्वा मानते थे। उन्होंने उन राजनीतिक पक्षों का मुखौटा जनता के सामने उजागर कर दिया. यही कारण रहा कि जब दिलीप लालवानी जी ने राजनीति में प्रवेश करना चाहता तो सभी प्रमुख पार्टीयां हाथ फैलाये उनके स्वागत में खड़ी हो गयी।
एक नगरसेवक, एक गुटनेता और कार्याध्यक्ष के रूप में दिलीप लालवानी जी ने राजनीतिक मैदान संभाले रखा और ऐसी पकड़ मजबूत बनायी कि विभिन्न जाती-समाज के लोगों के विभाग बनाये जिसके तहत उनके पैठ हर समाज में बनती चली गयी. फिर एक ऐसा दौरा आया जब उन्हें लगा कि छाया चित्रण और फिल्मों के माध्यम से अपनी बात समाज तक रखी जा सकती है, इसलिए उन्होंने सिंधी फिल्मों का एक स्वर्णिम दौर शुरू करवाया जिसके तहत उन्होंने 'जीवन चक्र' और 'जीवन साथी' जैसी सुपर हिट फिल्में दी, जो ना सिर्फ महाराष्ट्र में बल्कि भारत भर के विभिन्न शहरों में प्रदर्शित हुई और काफी ख्याति बटोरी, क्योंकि दोनों फिल्मों में समाज के ऐसे संदेश को लोगों तक पहुंचाया गया था जो इंसान के अंतरमन को चिरकर उसके दिल में स्थान बना लेता था और व्यक्ति उन बातों को अपनाकर अपना जीवन परिवर्तित करने लगा। फिल्मों के साथ-साथ उन्होंने समाजसेवा का बिड़ा भी उठाया और शुभचिन्तक वेलफेयर सोसायटी (रजि.) के बैनर तले उन्होंने धर्म परिवर्तन पर लगाम कसने का अथक प्रयास किया और सफल भी रहे. बापू आसाराम जी के अनन्य भक्त होने के कारण उन्होंने हिन्दू सनातन धर्म को हर व्यक्ति तक पहुंचाने का बिड़ा उठाया और इसी कड़ी में वेलेन्टाईन डे की जगत मातृ-पितृ-गुरूजन पूजन दिवस की नयी प्रथा शुरू की और अपने देवतुल्य पिताजी जेठानंद लालवानी जी को सिक्कों में तोलकर वह सिक्के समाजसेवा हेतु अर्पित किये, मातृ-पितृ-गुरूजन पूजन दिवस का यह सिलसिला अभी तक जारी है।
शुभचिंतक वेलफेयर सोसायटी के बैनर तले उन्होंने नेत्र ज्योति बढ़ाने के शिविर की नीव रखी जो अनवरत जारी है और केवल एक जगह नहीं, बल्कि तीन-तीन स्थानों पर यह नेत्र ज्योति शिविर आयोजित किया जा रहा है जिसमें वैद्य नन्दू बालकृष्ण मार्के अपनी सेवाएं दे रहे है। ऐसे निष्ठावान शख्सीयत स्वर्गीय दिलीप लालवानी का आज 12 सितंबर को शुभ जन्म दिवस है. दैनिक 'धनुषधारीÓ परिवार, शुभचिन्तक वेलफेयर सोसायटी (रजि.), मित्रगण, रिश्तेदार और सभी शुभचिन्तकों की तरफ से हम उनकी पावन स्मृति को नमन करते हुए यही कामना करते हैं कि हम सदैव उनके पदचिन्हों पर चलकर सच्ची मानवता का उदाहरण पेश करें।


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